पहाड़ी की उस चोटी से
लौटते समय
रास्ते में
सड़क किनारे
है एक छोटा सा वीरान मन्दिर
न जिसमें कोई मूर्ति है
न पुजारी,
न घंटी है
न चारदीवारी,
चिराग भी किसी नें
बरसों से अब जलाया नहीं,
कोई यहाँ आया नहीं,
रहते हैं उस दो हाथ के मन्दिर में
बस दो जन,
एक वो शख्स़
जो गिरा था
जीप संग
वहाँ से
खाई में
उस रात
एक मुद्दत पहले,
दूसरा
उसका भगवन
जिसकी मर्ज़ी थी|
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