न मैं करूँगा तारीफ़ न माँगूंगा माफ़ी, और न ही अपेक्षा करूँगा,
करता हूँ मगर वादा कि जुडूंगा ईमानदारी से बनकर कटी कलम तुम टहनी से देने मौका फिर उग आने का हमारी साँझी नसें।
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