तेरे दस्तख़त हैं
कहाँ कहाँ,
कायनात को छेड़ा है तुमने
कहाँ कहाँ,
अब मिट्टी भी हो जाओ
तो क्या,
ज़मीन को पहले सा कर पाओगे
कहाँ कहाँ,
मेरी मान
ज़िन्दगी में इतना संजीदा न हो,
किस्मत ए यार से लड़ेगा
कहाँ कहाँ,
माना कि तेरे माज़ी के हैं
ज़ख्म हज़ार,
नए फूलों को खिलने से रोकेगा
कहाँ कहाँ,
जो करना है कर ले
इन साँसों से,
बाद में बहती हवाओं से करेगा इल्तजा
कहाँ कहाँ,
चल जा कर
बचा कोई ज़िन्दगी,
ख़ून ए पाक़ से खेल कर
नहायेगा कहाँ कहाँ।
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