साँसों की तितलियाँ
Saturday, July 9, 2016
राहें
तो क्या
जो इस मन्ज़िल से
लौटने की राहें
हज़ार हैं,
अंजाम ए आगाज़ की
अब तलब किसे
आगाज़ ए अंजाम की जब
बाहें हज़ार हैं।
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