Sunday, September 14, 2014

छल्ले

२५६
छल्ले
क़िस्मत के

थे तैयार

सड़क किनारे

आज़माने
क़िस्मत को अपनी

बिक कर
मेरे हाथों

चलने को
साथ मेरे,

एक
मेरी
ऊँगली
की ज़िद थी
कि
पहनेगी
बना कर
ख़ुद ही
गर पहनेगी।

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