२५६ छल्ले क़िस्मत के
थे तैयार
सड़क किनारे
आज़माने क़िस्मत को अपनी
बिक कर मेरे हाथों
चलने को साथ मेरे,
एक मेरी ऊँगली की ज़िद थी कि पहनेगी बना कर ख़ुद ही गर पहनेगी।
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