क्या बात है?
बड़ी याद आ रही है गाँव के खेतों की?
देखते हो अर्श की छत को सीली पुतलियों से!
कहूँ आसमान से कि न चलाये हवा के हल बादलों पे, यूँ क्यारियाँ सी न बनाये!
No comments:
Post a Comment