Tuesday, September 30, 2014

बरसात

सुन सुन के
दुनिया
की
खुशनसीबी
वो
शख्स़
कब का
सूख
गया,

एक
दरख़्त सा
खड़ा है
गढ़ाये
वजूद की ज़मीन में
प्यासी जड़ों के
हज़ार हाथ,

अपने
सर की
बरसात
कब से
भूल
गया।

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