सुन सुन के दुनिया की खुशनसीबी वो शख्स़ कब का सूख गया,
एक दरख़्त सा खड़ा है गढ़ाये वजूद की ज़मीन में प्यासी जड़ों के हज़ार हाथ,
अपने सर की बरसात कब से भूल गया।
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