सुनाओ कोई आवाज़ जो उतरे भीतर बिन इजाज़त,
बीन डाले यादें सारी, कर सब उथल पुथल,
निकाले ढूँढ़ वो इक आह जो छुपी है कहीं बिन आहट!
No comments:
Post a Comment