साँसों की तितलियाँ
Sunday, March 15, 2015
प्याला
बड़ी देर से
बैठी
झाग
ज़िन्दगी की मय की,
जिस प्याले में
पड़े थे
लबलबाता जाम बनके
कूआँ
निकला।
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