रोज़ शाम
लौटते समय घर
गुज़रता हूँ
जब भी
सामने से उस घर के,
आती है
आवाज़
रहरास के पाठ की
वेदों के उच्चारण की
या धम्मपद की,
बूझ नहीं पाता हूँ।
गुनगुना रहा होता है
दबी आवाज़ में
कोई...
किस मज़हब की
गाता है
प्रार्थना
पहचान नहीं पाता हूँ,
ख़ुदा का एहसास
उठता है मगर
जाना सा
सीने में...
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