Tuesday, March 31, 2015

क्या

चढ़ आया था
जो
पीठ पर
सुबह सुबह,
काँधों पर
ढली सुबह
उतरा था,

बाहों में
था जो
दूसरे पहर,
शाम की कमर पकड़
उतरा था,

ढलती शाम
फिर
डूबता
वो सूरज,
जाने क्या
समझाता था|

No comments:

Post a Comment