Thursday, November 26, 2015

ख़ज़ाना

किस किस सफ़े नें
बाँध पीठ पर
करवा पार
युगों के दरिया
पहुँचाया है
आपके लबों से
शब्दों का ख़ज़ाना
मेरे कानों के तट,
मालूम नहीं,

मुझ ही से
शायद
जो कहा था
आपने,
मैंने सुन लिया!

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