किस किस सफ़े नें बाँध पीठ पर करवा पार युगों के दरिया पहुँचाया है आपके लबों से शब्दों का ख़ज़ाना मेरे कानों के तट, मालूम नहीं,
मुझ ही से शायद जो कहा था आपने, मैंने सुन लिया!
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