साँसों की तितलियाँ
Sunday, November 15, 2015
नक़ाब
रहने दो
कम्बख़्त के
चेहरे पर
नक़ाब,
कहीं
देख न ले दुनिया,
है कितना
ख़ुद ही
आतंकित!
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