Sunday, November 22, 2015

पलस्तर

दीवारों में
हंसते हंसते
चुनवाये
नहीं गए हैं,

वो लोग
खड़े हैं
ईंटों के
बिन पलस्तर
मकाँ के भीतर
खिड़की से
झाँकते हैं।

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