साँसों की तितलियाँ
Tuesday, December 22, 2015
रु ब रु
रु ब रु
दे दूँ
ख़िराज ए अक़ीदत
आज ही
ख़ुद को,
कौन जाने
बिछड़ने के बाद
मुलाक़ात
हो न हो!
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