साँसों की तितलियाँ
Saturday, December 5, 2015
कैसे
चश्माज़ार है
आपकी
इनायत का
बाज़ार,
कुछ धूप
कुछ साया
हों जो,
आपके
नज़ारों में
दिखें
कैसे!
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