Thursday, September 4, 2014

बीज

देह
की मिट्टी में
जब भी
दिख
सुन
उतर
जाते हैं

उड़ते
भटकते
ख़्यालों के
बीज

स्वतः
उग आते हैं
वक्त की
बूँदें पी
ऊँचे
यतीम
जंगली
पेड़।

जज़बातों से
तर बतर,
मेरे अन्दर
एक घना
वर्षावन है।

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