देह की मिट्टी में जब भी दिख सुन उतर जाते हैं
उड़ते भटकते ख़्यालों के बीज
स्वतः उग आते हैं वक्त की बूँदें पी ऊँचे यतीम जंगली पेड़।
जज़बातों से तर बतर, मेरे अन्दर एक घना वर्षावन है।
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