कभी नक्षत्र कभी चाँद कभी सूरज बन करते हो रास्ता मुझे इंगित, धुरी मुझ नभचर की बनते हो,
गुरु क्यों रुके हो मेरे लिए, क्यों छूटता ब्रह्माण्ड अपना मेरे लिए खोते हो!
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