Thursday, September 4, 2014

गुरु

कभी नक्षत्र
कभी चाँद
कभी सूरज बन
करते हो
रास्ता
मुझे इंगित,
धुरी
मुझ
नभचर की
बनते हो,

गुरु
क्यों
रुके हो
मेरे लिए,
क्यों
छूटता ब्रह्माण्ड अपना
मेरे लिए
खोते हो!

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