तेरे पन्नों की काया से दूर हूँ तो क्या, तेरे लफ़्ज़ों की गूँज से बधिर हूँ तो क्या,
ग़ौर से देखता मेहसूस करता हूँ तेरी क़ायनात की भंगिमायें, तेरा मुखवाक़ समझता हूँ।
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