हवा में फड़फड़ाता ध्वज आज भी है मेरी समझ से बाहर,
इंसान की कुदरत पे है फ़तह का सूचक, या कि उसके प्यार से भरे आत्मसमर्पण, आलिंगन आमन्त्रण आह्वान का....
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