Wednesday, February 4, 2015

ज़ाया

आठ आठ
घण्टे
मिलें
जब
फ़ुर्सत से
सोचने के लिए
निर्विघ्न,

कौन
सोये फिर
रात भर,
वक़्त
ज़ाया करे!

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