Monday, February 23, 2015

याद

इस
विशाल
चीड़ के पेड़ की
दर्जनों शाखाओं के रास्तों पर
सैकड़ों टहनियों की गलियों में
हज़ारों पत्तियों के घरों की
लाखों छिद्रों की खुली खिड़कियों में झाँकती
शाम की चीखती हवायें
याद दिलाती हैं
वो
बसा बसाया शहर
जो
छोड़ आये थे कभी
होते ही शुरू
गृह युद्ध।

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