रेत को नहीं मलाल बस एक ही मुट्ठी हो इधर उधर,
है उसे रेगिस्तान जितना इत्मिनान बनकर मज़दूर के बच्चे के नन्हें हाथों के खेल का हिस्सा,
जला उसकी बची कोमल त्वचा ज़रा सी और, कर उसे कल के लिए कुछ और पक्का।
No comments:
Post a Comment