Saturday, February 14, 2015

एक मुट्ठी रेत

रेत को
नहीं मलाल
बस एक ही मुट्ठी हो
इधर उधर,

है उसे
रेगिस्तान जितना
इत्मिनान
बनकर
मज़दूर के बच्चे
के नन्हें हाथों
के खेल का हिस्सा,

जला उसकी
बची
कोमल त्वचा
ज़रा सी और,
कर उसे
कल के लिए
कुछ और पक्का।

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