वीरजी, झोले के अंदर कुछ नहीं है, खाली है,
बाक़ी की उम्र भी अगर रहोगे ढूँढ़ते भीतर, टटोलते खंगालते रहोगे, तो भी नहीं मिलेगी इसमें कोने में भी,
वीरजी, मानो मेरी बात झोला ही ज़िन्दगी है।
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