इंसान ज़िंदा तो तू है बेशक़ हज़ार दसियों बरस से,
तेरे दीमाग़ का फन उठ रहा है कैसे मगर अब, तेरी सोच की पूँछ पर पड़ा है जब से सूचना क्राँति का पैर!
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