घटनाओं के ताप में वक्त के चूल्हे पर मजबूरी के चिमटे में नियती के हाथ नें तुम्हें पका ही दिया...
बिना नमक के भी अब नमकीन हो, स्वादिष्ट हो, पौष्टिक हो, ईश्वर का प्रसाद हो!
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