ज़िन्दगी जानता हूँ तू बहुत दूर निकल जायेगी,
पीठ पर बाँध मुझे कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगी,
फिर आज से मोह है या डर मुझे, क्यों छूटना भी चाहता हूँ और नहीं भी!
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