साँसों की तितलियाँ
Wednesday, May 6, 2015
रथ
चलाओ
फिर
जल्द
कोई
धर्म का रथ,
कुछ हवा चले,
बुझते तन्दूरों में
फिर आग जले
कुछ नया पके|
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