होनहार था बड़ा, यकीनन जानता होगा सुलगाना आग सीली लकड़ियों में भी,
होता न इसी का अंतिम संस्कार तो शमशान के भीगे लट्ठों का भी ढूँढ लाता कोई इलाज,
मज़दूरी की तरह आग भी आज इसे देर से मिलेगी सम्भवतः।
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