Monday, May 18, 2015

पन्ने

बम फटा है कोई
मगर
पन्ने पर नौंवें,
ज़लज़ला कोई उठ कर थमा है
पास ही के सफ़े पर,

हुआ है फिर एक मुज़ाकरा
पन्ने पर दूसरे,
कोई गुप्त समझौता चुपके हुआ है
चौथी दफ़े पर,

पाँचवें पन्ने पर किसी ने की है
पुरज़ोर आवाज़ बुलंद,
छठी तह में अभी तक दबी है
नाउम्मीदी लौ जलाकर,

बीच के पन्नों में दिलाई है किसी नें
होश की नसीहत,
इश्तहार बन बिकी है हक़ीक़त
अगले ही पन्ने पर,

अंत से पहले
की है
ज़िन्दगी ने
खेल बन
दिल बहलाने की एक दिली कोशिश,
हाशिये की आवाज़ों ने
तस्दीक की है,

आख़िरी पन्ने पर हुई है
एक नई शुरुआत,
पहले पन्ने पर जिसको
चुनौती मिली है।

No comments:

Post a Comment