एक मनीप्लान्ट था जो छूने को था छत,
और एक व्यापार था जो ज़मीन से उठने को राज़ी न था,
काश घूरा होता व्यापार को भी दिन रात मनीप्लान्ट की तरह लालाजी नें।
No comments:
Post a Comment