Monday, November 2, 2015

शहर

बेल से
शहर थे
पुराने
सारे,
मिलती
जहाँ
कोई
आज़ादी की सड़क
लिपट
बढ़ जाते,

हैं
पेड़ सी
आज की
नई बस्तियाँ,
जड़ों के अतीत से उठी
तनों की
शाखाओं से निकली
डंडियों की गलियों के
पत्तों से मकानों
में बसी।

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