काग़ज़ के वाद्ययंत्र की काली लकीरों की तारों को छेड़ती है जब तरतीब लय अपनी ही धुन में कलम की उंगली,
सुनती है आँखों को अक्षरों की क्या मधुर रागिनी!
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