Saturday, November 7, 2015

क्यूँ

रश्क़
करता है
यद्यपि
देख
गुज़रता
स्वच्छन्द धूमकेतु,
हर गृह
क्यूँ
चाहता है
बनना
आपने सौरमण्डल की
धुरी!

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