साया ही साया हूँ
मैं कहाँ हूँ
इन दिनों?
हूँ अपनी
ग़ैर मौजूदगी में
मौजूद,
कहाँ कहाँ हूँ
फिर भी नहीं हूँ
इन दिनों,
उठाये है ये कौन
मेरा बोझ
और क्यों,
टूटे पत्ते सा
हवा ही हवा हूँ
इन दिनों,
पहेली का राज़ बन
अटकी साँस हूँ कोई,
ये किस जवाब का
सवाल हूँ
इन दिनों,
खामोशियों में गूँजता
वीरानों में जश्न सा
किस ज़ख़्म को छुपाता
कौन सा दबा दर्द हूँ
इन दिनों,
दिखती है मेरी रूह गर तुम्हें
तो छुओ ज़रा,
जिस्मों की दुनिया में सहमा
एहसास ही एहसास हूँ
इन दिनों,
परबत हैं सजदे में
आसमाँ समंदर है,
ये कौन सी है दुनिया
किस सफ़र में हूँ
इन दिनों,
गूँजती है मेरी आवाज़ कहाँ कहाँ
चुप हो कर भी बोलता हूँ,
अपनी ही तलाश में
मिलता हूँ किस किस से
इन दिनों।
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