मेरे ही हाथों में पकड़ा मेरी सोच का काँटा, मुझसे ही लगवा उसमे मेरी ही तृष्णाओं का चारा, मेरी ही इच्छा से पकड़ती रहीं मुझे ही मेरी इन्द्रियों की मछलियाँ, मेरे ही पाश के समन्दरों में, बेचने मुझे मेरे ही बाज़ार में...
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