देते हो जिस खुशकिस्मती को आवाज़ जाकर गली में उसकी बन कर भंगार वाला,
कुछ देर तो रुक करो वहीं आस पास कहीं, देने उसे वक़्त ढूँढ ले आने को तुम्हारी इल्तजा का पिटारा...
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