झड़े पत्तों सूखी शाख़ों के बीचों बीच था मग़र अरमानों का आम न था,
बहुत ख़ास था वो सूरज जिसे तोड़ लेने को ललचाता था मन, रूह के हाथों मगर आसान न था...
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