Friday, November 28, 2014

खेल

लम्हों को
कब
मलाल
वक्त के
गुज़र
जाने का,

उड़ते हैं
कुछ देर
घड़ियों के
परिंदे बन
सूरज के पीछे पीछे
घौंसलों के रास्ते में
खेल समझकर.

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