Wednesday, November 5, 2014

बेल

बन
मेरे
सपनों की
बुलंद दीवार,
बेल
बन
लिपट
उठूँ मैं,

चढ़ूँ
पकड़
तेरे
सम्बल
की पीठ,
निर्वाण
की छत से
हक़ीक़त की
ज़मीन
देखूँ मैं।

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