बन मेरे सपनों की बुलंद दीवार, बेल बन लिपट उठूँ मैं,
चढ़ूँ पकड़ तेरे सम्बल की पीठ, निर्वाण की छत से हक़ीक़त की ज़मीन देखूँ मैं।
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