खोली जो उस भीख माँगते ने लाचारी में समझाने को अपनी बंद मुठ्ठी तो ऐ दुनिया उसमे तू निकली,
दिखी बन चारों दिशाओं सी एक एक धातू की अशर्फ़ी मगर खाली पेट को भर सुला देने को अभी दस कम निकली|
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