होगा ज़रूर वो किसी सूखी नदी का भीगने को तरसा चकमक पत्थर,
गुमनामी की हवाओं में उड़ने से रोके है मेज़ पर पड़े जज़्बातों के समंदर भरे सूखे काग़ज़।
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