उतारते रहो साथ साथ सर तक पहुँचती फूल मालायें कन्धों से,
उभरने तो दो पहचान को चाटुकारिता के कूएँ से कि दिखे भी तो भीड़ को कि कौन हो, जो लक्ष्य भी है आपका।
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