बारामदे में रखी उस कुर्सी का नाम मैंने उम्मीद रखा है,
मिले न मिले वक़्त उस पर बैठ सामने की वादी में आखों के रास्ते होने को गुम मलाल नहीं, उसके होने में ही मन को समझा रखा है।
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