ए कित्थे रेहा हुण गुरु दा द्वार, ए ताँ जिमीदारा निवास हो गया,
क़ैद करण दी फ़िराक़'च सी आसमान नूँ कौली, इक भाण्डा लंगर दी ईमारतों बाहर हो गया।
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