जिस तरह अख़बार में नज़रों ने ख़बरें चुन चुन कर रुक रुक कर पढ़ीं,
ज़हन नें बनाईं वैसी खबरें ज़िन्दगी के सफ़ों पर सोच के मुताबिक़।
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