Saturday, October 24, 2015

लाल

खड़ी हैं
खाली वृक्ष सी
मातायें,
इस बहार
जन के
सेब से
बच्चे,

ढूँढ़ती हैं
थकी टहनियों से
वो लाल
जो दूर मण्डियों में
कब के
बिक चुके!

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