खड़ी हैं खाली वृक्ष सी मातायें, इस बहार जन के सेब से बच्चे,
ढूँढ़ती हैं थकी टहनियों से वो लाल जो दूर मण्डियों में कब के बिक चुके!
No comments:
Post a Comment