साँसों की तितलियाँ
Thursday, October 15, 2015
मुक़द्दस
एस
शरियत दी पहोंच
एम्बैसियाँ महलाँ दी
दीवाराँ दे पार
नईं,
ओ
मुक़द्दस
शरियत
लेआवो
जेड़ी उड़ के जावे!
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