Saturday, October 31, 2015

रंग

कहाँ
कब
मज़हब की जंग
मज़हब से हुई है,
ये दासताँ तो
फ़क़त
सुनाई सुनी है,

जिस
फ़साद को दिया है
रंगरेज़ नें
मज़हब का रंग,
किसी सियासतदां
के हुक़्म की
तामील हुई है!

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