हो अक्षरों के पत्थरों पर बैठी अकेली, तर्ज़ की लहरों से टकराती, अर्थ के सागर किनारे, ज़रूरी तो नहीं,
जिसे पढ़ें लाखों और भीग जायें, हो सकती है ऐसी ख़बर भी आहत कवि की कविता, सम्मान लौटाने का सहज निर्णय, दिल की व्यथा।
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